प्रज्ञा संस्थान - शोध संवाद एवं पहल

प्रज्ञा संस्थान की स्थापना दिसम्बर 1999 में ही हो गई थी लेकिन इसके तहत नियमित गतिविधियों की शुरुआत जुलाई 2000 से आरम्भ हुई। प्रज्ञा की कल्पना एक बौद्धिक विचार मंच के रूप में हुई थी इसलिए विचारों के आदान – प्रदान के साथ देश के सामने खड़ी समस्याओं पर सार्थक संवाद चलाने के उद्येश्य से पहला कार्यक्रम एक ऐसे मुद्दे पर आयोजित किया गया जिस पर सार्वजनिक बहस की परंपरा नही रही है।

देश की आतंरिक और वाह्य सुरक्षा पर यह संवाद 1 जुलाई 2000 को कांस्टिट्यूशन क्लब (नई दिल्ली) में आयोजित हुआ। इसका उद्घाटन पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने किया। मुख्य वक्ता तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीज थे। इस संवाद में आईबी के पूर्व अतिरिक्त-निदेशक एम.के धर ने लगभग 70 पन्ने का एक दस्तावेज भी रखा।

प्रज्ञा निष्पक्ष संवाद को प्रोत्साहित करना चाहती है। नवम्बर 2000 में प्रज्ञा ने गोविंदाचार्य को निमंत्रित किया कि वे भाजपा से अपने अध्यन अवकाश पर देश के लोगों से बात करें। अध्ययन अवकाश से वापस आने के बाद वह पहली बार प्रज्ञा के मंच से देश के लोगों से रूबरू हुए। गोविंदाचार्य के उस भाषण और सवाल – जवाब को पुस्तिका के रूप में प्रकाशित किया गया। इस पुस्तिका का नाम था – युगानुकूल स्वदेशी। ….पूरा पढ़ें

उद्देश्य और कार्य

  • उन व्यक्तियों, समाजशास्त्रियों, विभिन्‍न क्षेत्रों के विशेषज्ञों, संस्थानों और संगठनों को अंतर्धारात्मक संवाद, का मंच प्रदान करना जो नवनिर्माण से जुड़े है।
  • भारतीय समाज की सामाजिक, आर्थिक,सास्कृतिक और राजनीतिक समस्याओं का सर्वेक्षण, अध्ययन, विश्लेषण और अनुवर्ती प्रवास।
  • देश विदेश की उन समसामयिक हलचलो का विवरण और संदर्भ सामग्री एकत्र करना जिनका समाज पर, दूरगामी असर पड़ सकता है।
  • अपनी जड़ों की पहचान करते हुए कालक्रम में उनमें आई विकृतियों का अध्ययन और उनकी पुनः व्याख्या।
  • वैश्विक सन्दर्भ में राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़े सवालों का अध्ययन।
  • ‘प्रासंगिक साहित्य का प्रकाशन और प्रसार।
  • भारत महादेश में सांस्कृतिक परस्परता का अध्ययन और संवर्धन।

अध्ययन केंद्र

संविधान ने एक लोकतांत्रिक राज्य की व्यवस्था की है। उसे आम चुनाव लाकर करते है। लोकतंत्र के विकास में चुनाव की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। चुनाव से राज्य का संचालन जनप्रतिनिधियों के हाथ में आ जाता है। इस चुनाव क्रिया से ही राजनीति को आकार-प्रकार मिलता है। राजनीति दल प्रणाली से संचालित होती है।

देश मे चुनाव की निरंतरता से समाज की लोकतांत्रिक ग्रहणशीलता को विश्वव्यापी मान्यता और प्रतिष्ठा दिलाई है। उन आंशकाओं को दूर कर दिया है जो पश्चिमी राजनीतिक विद्वानों ने शुरू मे प्रकट की थी। इन चुनावों से नागरिक के राजनीतिकीकरण की प्रक्रिया को अबाध मति मिली है।

चुनावों से हमारे जनजीवन में एक खुलापन आया है। मतदान में रूचि और नागरिकी सहभाभिता बढ़ी है। निर्वाचन आयोग ने आपने लिए एक सम्मान का स्थान अर्जित किया है। फिर भी राजनीति ने विसंगतियाँ है जो चुनाव सुधार की माँग करती है। चुनाव सुधार निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। पिछले एक दशक में चुनाव सुधार के कई कदम उठाए गए है सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग के अलावा नागरिक प्रयासों ले यह संभव हो सका है।

इन घुनाव सुधारों से राजनीति को पूरी तरह निर्मल नही किया जा सका है। जरुरी है कि चुनाव सुधार पर निरंतर, ‘विचार-मंथन’ हो । प्रज्ञा संस्थान का यह अध्ययन केंद्र इस दिया में प्रयास करता रहेगा।

सूचना एवं गतिविधियाँ

लोकनीति केंद्र

प्रज्ञा संस्थान ने सरकार की नीतियों पर अध्ययन और संवाद के लिए लोकनीति केन्द्र की स्थापना की हैं। निरंतर नए लेखों एवं वीडिओ के लिए लोकनीति केन्द्र की वेबसाइट www.loknitikendra.com विजिट करें

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